*543. क्या सो गए सुमिरन की बरियां ।।244

        क्या सोवे सुमिरन की बरिया।।
दिनचर्या दिन की सुधि नाही जग धरो जग जलती जलरिया।
न्यू उपदेश संदेश कहते हैं भजन करो चाहे गगन अटरिया।।
नित उठ पाच पच्चीस का झगड़ा जागो मेरी सूरत चुनरिया।।
कहे कबीर सुनो भाई साधो भजन बिना तेरी सुनी नगरिया।।

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