*495 हमारे सतगुरु ने मारा है बाण ।। 221
म्हारे सतगुरु ने मारा सै बाण मर्म में लग गया जी।।
तुम्हारे सतगुरु ने बाड़ी बोई झुकी फलों की आड़।।
पांच मृग पच्चीस मृग्णी लगी है पिलपिल खान।।
ज्ञान बाण ठाया सतगुरु ने खींची शब्द कमान।
सूरत बैल कर ले फटकारे जीत लिया मैदान।।
लाग्या बाण धरमगढ़ टूटा लगे मृग थर्रान।
पांच पच्चीस पुरी तज भागे पकड़ लिया शैतान।।
कहे कबीर सुनो भाई साधो हर घर से घट आन
दुविधा दुरमति दोनों भागी मिट गया आवन जान।।
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