*237. कर भजन बंदगी बंदे।। 91
कर भजन बंदगी बंदे कटे मोह माया के फंदे।।
सतगुरु का भजन कर भाई तू, कुछ कर ले खास कमाई तू। तेरे फिरे अक्ल पर रंदे।।
नाम बिना क्यों पड़ा खाई में नूगरा बन रहा अवाई में।
तूं विचार छोड़ दे गंदे।।
तुझे संत गुरु और पिता माता सत्संग की बातें रहे बता
यह चार पुरुष नहीं अंधे।।
वनराज भजन दर्शाता है, गुणियों से माफी चाहता है।
मेरे सतगुरु सूरज चंदे।।
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