*131. मेंरे सतगुरु चेतन चोर।। 53
मेरे सतगुरु चेतन चोर मेरा मन मोह लिया जी।।
जिसके लागे वही जाने क्या जाने कोई और।
घायल की गति घायल जाने क्या जाने पग चोर।।
भूल गई मैं तन मन अपना भूली लाख करोड़।
लगी हुई एक पल ना बिसरू जैसे चांद चकोर।।
जब से दृष्टि उल्टी मेरी नजर ना आए कोई और।
ढूंढ लिया मैंने घट के अंदर मिट गई मन की लोर।।
जल्दी से सतगुरु के पहुंच गई भाग गए सब दूर।
मीरा को रविदास मिले हैं चला नहीं कोई जोर।।
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