*61. मेरे सतगुरु पकड़ी बांह नही तो।। 21
मेरे सतगुरु पकड़ी बांह नहीं तो मैं बह जाती।।
कर्म कार्ड कोयला किया ब्रह्म अगन में दार।
लोभ मोह भरम जलाया सतगुरु बड़े दातार।।
कागा से हंसा किया जात वरन कुल खोय।
दया दृष्टि से सहज संभाला पातक डारे धोए।।
अज्ञानी भटकता फिरे जात वर्ण अभिमान।
सतगुरु शब्द सुनाया भनक पड़ी मेरे कान।।
माया ममता तज दई विषय नाही समाय।
कह कबीर सुनो भाई साधो हद तज बेहद जाए।।
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