*779. देखो रे लोगो भूलभुलैया का तमाशा।।371

              देखो रे लोगों भूलभुलैया का तमाशा।।
बालापन में ज्ञान नहीं था जवानी में ओढ़ा खासा।।
कॉल बली का लगा झपट्टा तेरी हुई स्वासम स्वासा
      जीवे इतने माता रोबे बहन रोवे दस मासा।
      तेरह दिन तक तिरिया रोवे फेर करें घर वासा।। 
भुजा पकड़ तेरा भाई रोवे, शीश पकड़ तेरी माता।
चरण पकड़ तेरी तिरिया रोवे तोड़ चला क्यों नाता।।
      ड्योढी तक तेरी तिरिया का नाता फलसे तक तेरी माता।
      मरघट तक ये लोग नगर के फिर हंस अकेला जाता।।
हाड़ जले ज्यों लाकडी रे केश जले ज्यों घासा।
सोने जैसी काया जल गई कोई ना आया पासा।।
    ढका धरा तेरा सारा रह गया, जिसकी ला रहा था आशा।
   कहे कबीर सुनो भाई साधो यह दुनिया का रासा।।

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