*558. राम रट ले रे तू प्राणी 264.
राम रट ले रे तू प्राणी, उम्र तेरी जाए बिहानी।।
बूंद बूंद टपके जैसे, रे अंजलि से पानी।।
गर्भाशय से बाहर आया भाग बड़े मानुष तन पाया
माया मोह में भूलाए गया हो प्रभु खुद बिसरानी।
हाथी घोड़े महल अटारी माल खजाना संपत सारी
सांस निकल जाए पलक में होश बिरानी रे।।
क्या सोवे सुख सेज सजाई कॉल खड़ा सिर घात लगाई।
जैसे बाज झपट चिड़िया को ले जाए उड़ानी रे।।
राम नाम जो जन नित्य गावे,, ब्रह्मानंद परम पद पावे।
जन्म मरण दुख जाए सकल भव पास कटानी रे।।
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