*386 बंजारन अँखियाँ खोल।। 162
162
बंजारिन अँखियाँ खोल, टांडा तेरा किधर चला।।
क्या सोवै उठ जाग दीवानी
आगै गारत गोल।।
तूँ गहले गफलत के माते,
तेरी चीज है वस्तु अमोल।।
चहुँ दिश लद लद चले मुसाफिर,
मत गई दे दे पोल।।
देव बिहुनी सब ही सूनी,
ना हद किये किलोल।।
रैन बिहुनी ये तूँ न जानी,
कहा बजाऊं ढ़ोल।।
नित्यानन्द महबूब गुमानी,
रंग में रंग झकोल।।
Comments
Post a Comment