*221. भजन बंदगी कर सतगुरु की।। 86
भजन बंदगी कर सतगुरु की छोड़ दुनी माया का मोह।।
चलना है रहना नहीं बंदे जग में जीना है दिन दो।।
माटी का कलबूत बनाया दस दरवाजे देखें नो।
दसवें के घर अनहद बाजे दास दर्श की रचना होय।।
इस काया में भंवर रंगीला फूल लहरिया रंगे सब कोय।
जल गया मनवा रहीना वासना हिलनिया जड़े डट रहा होय।।
सोने से अकड़ी चांदी कहीए चांदी से अकड़ी कहिए लोह।
नो एक ही बन जाए श्री कटारी लगे शब्द घर होजा दोय।।
कहर कबीर सुना भाई साधो अलख पुरुष में लाले लो।
लो लाया तैं पार उतर जा, जिसके सतगुरु पूरे हों।।
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