*208 मस्ताना मस्ताना कोई जन पाया पद निर्माणा।।82

मस्ताना मस्ताना कोई जन पाया पद  निरवाना।।

मग्न हुए चढ गए गगन में, अधर धार धर ध्याना।
लगन लगाए बिसराई सबको, अनहद शब्द पहचाना।।

मानसरोवर मिटा जुगत कर, मन ऊनमन ठहराना।
मोती मुक्त उछल अनुभव के, कर हनसा असनाना।।

लक्ष कला ले चंद्रप्रकाशा, सहस कला ले भाना।
जगमग लगी महल के भीतर, देखें दर्श दीवाना।।

परम सुन्न में पर्चा हुआ, चेतन चरण समाना।
निर्गुण से तेज की नगरी, बहू अवगत अस्थाना।।

बरसे पदम दामिनी दमके हर हीरो की खाना।
गम से दूर अगम से आगे अद्भुत अजब ठिकाना।।

खिल गया कमल नवल वर पाया, नित्य प्रति अमृत पाना।
अमर कंद भव बंधन व्यापे, जिस घर भरम भगाना।।

पांच पच्चीस पुरी तक भागी, जीत लिया मैंदाना।
नित्यानंद महबूब गुमानी, अब निश्चय घर जाना।।

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