*190 हृदय बिच हरी है साधु।।75।।

 हरदे बीच हरी है साधु हृदय बीच हरी है।
तेरे भीतर साहिब तेरा सतगुरु खबर करी है।।

 धर दूरबीन चश्म को फेरो या जगमग जोत जगी है।
कहीं-कहीं गुप्त किसी से प्रकट सब घट वस्तु भरी है।।

साहब नूर नूर के सेवक नूरी ही की  नगरी है।
सूक्ष्म सेज विहंगम बाजे वह घर परा परी है।।

सूरज करोड रोम की शोभा सो तबीयत खरी है।
देवी देव भेंव नहीं पावे ये आत्म ब्रह्मपुरी है।।

मकर तार पर मुरली बाजे या बरसात रंग झड़ी है।
तिल की ओट तमाशा देखें हाजिर घड़ी घड़ी है।।

गंगा जमुना बहे सरस्वती धार अजब भरी है।
मार्ग मीन जाए घर पहुंचे उनकी भली सरी है।।

आप मिले स्वामी गुमानी, जहां पर मेहर फिरी है।
नित्यानंद महबूब गुमानी चले उस पथ पर तीनों ताप टरी है।।

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