*176. सखी हे रही पीहर में घूम।। 69
सखी हे रही पीहर में घूम सासरे का ख्याल नहीं।।
सगे संबंधी मित्र प्यारे नहीं किसी से मेल।
सीधी होकर चाल बावली नहीं बाजीगर का खेल।
तू तो भूली फिरे है फजूल समझी इनकी चाल नहीं।।
राजी बोले काम करा ले साधो अपना काम।
पिया के संग जाना होगा भूल गई उसका नाम।
तेरी काया रह जाएगी धूल बूझे कोई बात नहीं।।
सारी दुनिया का ख्याल छोड़ के लाले हरी में प्रीत।
बार-बार ना गाए जाएंगे इन गुरुऑ के गीत।
गाली से टूट जाएगा फूल आवे तेरे हाथ नहीं।।
कहे कबीर सुनो भाई साधो क्यों बांधे सै पाल।
चार जने तने लेवन आवे मूल करे ना टाल।
तने जाना पड़े जरूर होगी कती टाल नहीं,
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