*171 इसको जगा ले सजनी बन्ना सोवे हैं अटारी।। 67
इसको जगा ले सजनी बनडा सोवे है अटारी।।
बिन कर मेहंदी लगी बन्ने के बिन देह चढ़ी हल्दी।।
जहां बंदे की शहर लगी है वहां गगन गई धरणी।।
उस बंदे की सवेरे सेज पर बिना शीश के वा झगड़ी।।
कहे कबीर सुनो भाई साधो पिया के संग सजनी।।
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