*287. भाई सत्संग हो रहा सच्चे गुरु के दरबार।। 119
भाई सत्संग हो रहा सच्चे गुरु के दरबार।।
संतो की महिमा न्यारी है कोई समझे समझन हार।
प्रेम भरी वाणी सुन सुन के मेरे होती खुशी अपार।।
साफ आत्मा वह सत्संग से सारे मिटें विकार।
जिनको सत्संग से प्रेम नहीं, वे भूमि पर भार।।
तीन लोक की हद से ज्यादा करते हैं प्रचार।
नागदा नगदी सौदा कर ले ना ले ना पड़े उधार।।
सत्संग जैसी बात नहीं तुम देखो सोच विचार।
सभी संत महात्मा ने भई, करा सत्संग से प्यार।।
सच्चे सतगुरु राम सिंह है अब अगम पुरुष की धार।
ताराचंद ले संतों का सरना, हो इब के बेड़ा पार।
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