*199 हरि प्रीतम से प्रीत लगा के।। 79
हरि प्रीतम से प्रीत लगा के अब क्यों जग में सोवे री।।
प्रभु विसार वार सिर लीन्हा, जन्म अमोलक खोवे री।
जो जागी सो चरणों लागी, जो सोवे सो खोवे री।।
अमृत अमर छोड़कर बावली विषय बीज क्यों बोवे री।
ऐसी मेहर फिर कहां पाइए मूड पकड़कर रोवे री।।
प्रेम नगर की डगर चले जो प्रभु का मन गुण पोवे री।
हे मेरी प्यारी मन मतवाली रंग में रंग समोवे री।।
चरण चंद चित् माही चेत ले, चादर ना कोई धोवे री।
नित्यानंद महबूब गुमानी दिल में दर्शन होवे री।।
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