*200 नर जन्म अमोलक खोया रे।। 79
नर जन्म अमोलक खोया रे।
सुधा समुद्र के ढंग जाकर दिल का दाग ना धोया रे।।
जम का जाल कॉल मग भारी, तुम क्यों मूल बिगोया रे।।
सपन स्वरूप कनकुर कामिनी इन्हीं में सुख सोया रे।।
अंत समय अमृत कहां पाई है राम विसर विष रे।।
निजानंद भजन गुमानी सो नर युग युग रोया रे।।
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