*216. राम भजन की बरिया।। 84

राम भजन की बरिया तेरी राम भजन की बार।
मन में पंछी पुराण परेवा, उड़ चल रे गवार।।

ना कर ईर्ष्या ना कर निंदा ना काहू से प्यार।
देखत ही चल जाएगा रे जगत स्वपन व्यवहार।।

क्या राज करी बादशाही सो चौड़े दीजेगी जार।
काहे को तुम खोवो कुब्ध में ऐसा मनुष्य अवतार।।

चेत सके तो चेत अब आगे हो घनो अंधियार।
कॉल क्रोंत धार सिर ऊपर कबहूं होई दुश्वार।।

नो से लाल नजदीक है रे प्रेम की पीर पुकार।
नित्यानंद स्वामी गुमानी को भेंट ले ब्रह्म मुरार।।

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