*192. तन मन शीश ईश अपने को। 76

तन मन शीश ईश अपने को पहलम चोट चढ़ावे।
      जब कोई राम भगत गति पावे हो जी।।
सतगुरु तिलक अय्यप्पा माला जुगत जटा रखवावे।
जत कोपीन और सत् का चोला माहे भेख बनावे।।

लोक लाज कुल की मर्यादा तृण ज्यों तोड़ बगावे।
 कनक कामिनी जहर कर जाने शहर अगमपुर जावे।।

ज्यों पतिवर्ता पीव संग राजी, आन पुरुष ना भावे।
बसे पिहर में प्रीत प्रीतम में न्यू जन सूरत लगावे।।

स्तुति निंदा मान बड़ाई मन से मार भगावे।
अष्ट सिद्धि की अटक ना माने आगे कदम बढ़ावे।।

आशा नदी उलट के फेरे आडा बंद लगावे।
बहु जल खार समंदर अंदर फेर ना फोड़ मिलावे।।

गगन महल गोविंद गोसाई पल में ही पहुंचा वे।
नित्यानंद माटी का मंदिर नूर तेज हो जावे।।

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