*224. एक हरि के नाम बिना प्रलय में।। 87
87
एक हरि के नाम बिना परलय में धक्के खा भाई।एक गुरु के विश्वास में ना कहो किसने मुक्ति पाई।।
यह संसार सपन का मेला यह मेला भरता यहां ही।
एकला आया एकला जागा संग साथी कोई है नाहीं।।
धर्मराज के न्याय पड़ेगा लेखा हो राई राई।।
जो पूंजी पूरी ना उतरे सजा वार हगा भाई।।
पूंजी घटसी तू नर पिटसी मार पड़े बहुता भाई।।
तूं दरगाह में ऐसे नाचे जैसे मछली जल माही।।
सतगुरु भेद चिता के बोले क्यों मूर्ख समझा नाही।
सारी उम्र यूं ही गवा दई सतगुरु ज्ञान बिना भाई।।
नाथ गुलाब गुरु मिले पूरे हमने सुन सोधी आई।
भानी नाथ शरण सतगुरु की निर्भय जाप जपो भाई।।
Comments
Post a Comment