*508. निंद्रा बेच दूं कोई ले तो।। 231

निंद्रा बेच दूं कोई ले तो।।
राम नाम रटे तो तेरा मायाजाल कटे तो।।

भाव राख सत्संग में बैठो चित में रख चेतो।
हाथ जोड़ चरणों में रख दो जो कोई संत मिले तो।।

पाई की मन पांच बेच दूं, जो कोई ग्राहक हो तो।
पांचों में से चार छोड़ दूं जो राम रोकड़ा दे तो।।

के तो जावो राज दवारे के रसिया रस भोगी।
म्हारा पीछा छोड़ बावली, हम तो रमते जोगी।।

कहे भरथरी सुनहरी निंद्रा यहां ना तेरा वासा।
मैं तो म्हारे गुरु चरणों में, हो राम मिलन की आशा।।

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