*197. तेरो दोजक दोष मिटा ले।। 78
एरो दोजक दोष मिटाले, इब मन हरि भज आनंद पाले।।
हरि नाम तत सार जगत में उर् बीच खूब रमाले।
हो अन रोग रोग नहीं व्यापे, सूरत नाम पर लाले।।
पांचो प्राण एक घर ला, फिर त्रिगुन तार मिला ले।
प्राणायाम की योग युक्ति से, स्वांसा चक्र सुलझा ले।।
गंगा जमुना बहे सरस्वती घाट सुखमना नहा ले।
तीनों धारा बहें इकसारा, गुरुमुख गोते लाले।।
जो कोई भेदी मिले अगम का उन संग भेद मिला ले।
भेदी ना बक्वादी मिल जा उनसे चुप लगा ले।।
बनो सूरमा हिम्मत मत हारे जीवादास परखाले।
हज की बाजी छोड़ दे मनवा बेहद नगर बसाले।।
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