*381 खेती भली कमाई साधु, अलख नाम लो लाई ।।160

जिसने अलख नाम लो लाई साधो, खेती भली कमाई।।

मनसा खाल लगा म्हारे सतगुरु सुरती की लहर चलाई।
गगन मंडल से अमी रस बरसे काया ने सींचो भाई।।

नेम धर्म के बैल बनाए तन की ह लस चढ़ाई।
सूरत निरत की फ़ाली लाके, धीरज धरती बाही।।

राम नाम का बीज जो बोया, गुरुमुख डोली लगाई।
इस खेती में नफा बहुत है, निष्फल कभी ना जाई।।

काम क्रोध की पड़ी झावली, करडी बांध चलाई।
आशा तृष्णा घास जली है, सुरती ने बैठ नहलाई।।

कच्चा खेत खेत कर राख्या, ज्ञान  गोफिया भाई।
जा चिड़िया जब लगी खेत में, शील में मार उड़ाई।।

पक्का खेत प्रेम कर कांटा, क्षमा की रास लगाई।
काम क्रोध जो तूड़ा निकला, पशुओं ने छिक़ छिक्  खाई।।

घीसा संत शरण सतगुरु की या खेती मन भाई।
सहजो मेहर हुई सतगुरु की आवागमन मिटाई।।

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