*391 राम भजो रे, एक दिन टांडा लद जासी।। 163

राम भजो रे सुमिरन कर लो, एक दिन टांडा लद जासी।।

जंगल चरती बोली बकरी, हाय कसाई मुझे ले जासी।
चीरी खुरी मेरी न्यारीन्यारी करदी, फेरचरने को कौन आसी।।

हटडी देख वो बोला बनिया, हाट मेरी उरै रह जासी।
पूरा पूरा तोल मेरे लाला, फेर तुलन को कौन आसी।। 

बाग में बैठी वा बोली मालिन, बाग मेरा उड़े रह जासी।
नन्ही नन्ही चुनो मेरी कलियां, फेर चुनन को कौन आसी।

चाक घुमाता बोला कुम्हरा, चाक मेरा उरै रह जासी।
कह कबीर सुनो भई साधो, माटी में माटी तेरी मिल जासी।।

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