*263. बंदे रट ईश्वर की माला।। 102
बंदे रट ईश्वर की माला, क्यों नर जुलम करे खाली।।
मंडे किस गफलत में सोता क्यों नर भार विपत का ढोता।
एक दिन उड़ जायेगा तोता पिंजरा पड़ा रहे खाली।।
बंदे क्यों अभिमान करें सै, क्यों मालिक से नहीं डरे से।
तुम तो यूं ही विपद भरै सै, या दुनिया जाए रही चाली।।
कॉल तो ना मौका झुकेगा फिर तू बता कहां रुकेगा।
एक दिन दरखत भी टूटेगा, चमन में ना रहे हरियाली।।
तेरा स्थूल बना दिन दो का हरि भजन का यह है मौका।
1 दिन लगे पवन का झोंका, टूटेगी फूल से डाली।।
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