*460. तूं चली जा हे, मार्ग अपने को। 197

तू चली जा हे, मार्ग अपने को।

तू ठगनी ठगने को आई ठगने आई मोए।
हम हैं ठगिया राम नाम के बेच खाएंगे तोए।।

घूंघट काढ चली पीहर से घूमर घूमर होए।
इन गलियों में क्या काम है तेरा लंबी डगरिया होए।।

अब पछताए होत क्या सुंदरी, दिन्हा खलक डुबोय।।
सुख देख पिया को रोए लाज ना आई तोए।।

प्रेम पियाला सो जन पीवे ज्योत मर जाए जोय।
कह कबीर सुनो भाई साधो असल जात का होए।

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