*375 गठरी छोड़ चला बंजारा।। 158

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गठरी छोड़ चला बंजारा।
इस गठरी में चांद और सूरज इसमें नौलखा तारा।।
इस गठरी में सात समंदर कोई मीठा कोई खारा।।
इस गठरी में नौबत बाजे अनहद का झंकारा।।
कह कबीर सुनो भाई साधो कोई समझे समझन हारा।

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