*195. पिया क्यों ना ली हो खबरिया हमारी।। 77
पिया क्यों ना लेई हो खबरिया म्हारी।।
निशि वासर मेरी पलक ना लागे बढ़ गई वेदन भारी।।
आंगन भयों विदेश सखी री, प्रीतम अटल अटारी।
मैले भेष उनमने लोचन, झुर-झुर हो गई खारी।।
पलक पलक मोहे युग बीते जब से नाथ विषारी।
आप अगमपुर जाए विराजे, हम भव जल बीच डारी।।
हम से भूल हुई या तुम ही चुके मेरे मीत मुरारी।
नित्यानंद महबूब गुमानी तुम जीते हम हारी
Comments
Post a Comment