*182 हुई मेहर गुरु की मरण लगा परिवार।। 72
हुई मेहर गुरु की मरण लगा परिवार।।
पहलम वही राम की वाणी होने लगी फिर कुनबा घानी।
फेर मरी घर की पटरानी, पुत्र मर गए चार।।
पुत्र मारे पांच पचीसों, और मरे तो गेहूं पिसूं
लात मार के बाहर घिसूँ, करूं किले के बाहर।।
तीन जेठ जिनमें मर गए दोई, एक बचा सो करें रसोई।
जीमन वाला रहा ना कोई, संतो करो विचार।।
दोनों मर गई दौर जेठानी, नित उठ रखें खींचातानी।
सुखीराम में हो गई स्यानी सोंऊंगी पैर पसार।।
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