*343 तेरी गुदड़ी में हीरा जड़ा।। 141
तेरी गुदड़ में हीरा जड़ा भाई साधो हो रावलिया मेरे बीर।।
कै गज की बाबा की गुदड़ी भाई साधु।
कै गज का विस्तार
नो गज की बाबा की गुदड़ी भाई साधु ।
दस गज का विस्तार।।
पटपट अंबर बाबा की गोदड़ी भाई साधु।
झिलमिल झिलमिल होए।
जल गई बाबा की गुर्जरी भाई साधु।
वह रोया दास कबीर।।
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