*179 हे सखी जाना से ससुराल मोह छोड़ दिए।। 71

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हे सखी जाना से ससुराल, मोह छोड़ दिए पीहर का।।
काम क्रोध मद लोभ त्याग ले, माया की नींद से जाग ले।
   हे कर जीवन का उद्धार, मोह छोड़ दिए पीहर का।।
प्रीति पीहर की ना जानेगा, संग ले जाने की ठानेगा।
      हे ना मानेगा भरतार, मोह छोड़ दिए।।
डोली तेरी खूब सजावें, सिर पर चुनर लाल ऊढ़ावें।
      ले जांगै चार कहार मोह छोड़ दिए।।
संग ना जावे पीहर वाले, जाएंगे थोड़ी दूर बेचारे।
      हे आवे उल्टे तने लिकाड़, मोह छोड़ दिए।।
प्रीत पीहर की तज दो प्यारी, परम पिया को भजलो प्यारी।
     हे तेरा हो जा बेड़ा पार, मोह छोड़ दिए।।

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