*223. भजन बंदगी कर सतगुरु की।। 86

भजन बंदगी कर सतगुरु की छोड़ दूं नी माया का मोह।
चलना है रहना नहीं बंदे जग में जीना है दिन दोय।।

काशी जी से चले ब्राह्मण चार वेद पढ़ आए हो।
पढ़ते-पढ़ते ज्ञान हुआ था ज्ञान बताएं भाजे वो।।

राम नाम की चौसर मंडी सुरता सार लगा लई लो।
घूम के आई जो फेरा पीछे आगे पड़ गई पोह।।

उड़ा भंवरा बन खंड को चाला, फूल पर जा लपटा वो।
उड़ गई धूल बिखर गए मोती हीरा हाथ से चाला खोए।।

धोली घोड़ी जीन बना ली, निकला छैल बाराती वो।
चार मुसाफिर आठ दमकती अवसर बीता जा से हो।।

सोने से तो चांदी अकड़ी चांदी से अकड़ी कहीं लोए।
लोहे की बन जा छोरी कटारी मार शब्द से कर दे दो।।

जो इस पद का अर्थ बतावे खास गुरु का चेला हो।
शरण मछंदर जत्ती गोरख बोले संतों में रम जाना हो।।

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