*373. के बांध गाँठड़ी लाया।। 157
157
के बांध गाँठड़ी लाया रे, बन्दे सब ईश्वर की माया रे।।
यो आदम देह का चोला, बड़ी मुश्किल तैं पाया सै।
तूँ कुछ भी सँग ना लाया, सब रचा धरा पाया सै।
तूँ बन्द कर मुट्ठी आया रे।।
इस मोहमाया के जग में, तनै तन को खूब फँसाया।
फेर निकल सका ना जाले से, तूँ बहुत घना पछताया।
गृह के चक्कर में आया रे।।
यहां झूठी मेरा मेरी, कोय चीज यहाँ नहीं तेरी।
यमराज घाल लें फेरी, तेरे तन की होजा ढेरी।
बन राख तेरी साया रे।।
कहि रणसिंह भाई कवियों ने, एक अच्छी बात बताई।
तेरे कुछ न चलेगा सँग में, सँग चालै सिर्फ भलाई।
जिनै हरि नाम को ध्याया रे।।
Comments
Post a Comment