*272. ऐसा अवसर बार-बार नहीं आवे।। 110

ऐसा अवसर बार-बार नहीं आवे।
अब तो सोच समझ नर मूर्ख, व्यर्था काहे गवावे।।

नर देही देवों को दुर्लभ बड़े भाग्य से पावे।
ऐसा रतन अमोलक हीरा काहे धूल मिलावे।।

सांस खजाना भक्ति भजन बिन दिन दिन बीता जावे।
गई सांस फिर कभी ना लौटे चाहे लाख करोड़ गवावे।।

या नर तन की यही बढ़ाई या मैं गुरु का दर्शन पावे।
गुरु की भक्ति संत की सेवा नर तन से बन पावे।।

अवसर पा वृथा मत खोवे, साहेब कबीर समझावे।
धर्मी दास सतनाम सुमर ले अजर अमर घर पावे।।

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