*345हमारा कोई मीत ना बैरी।। 144

हमारा कोई मीत ना बैरी।।

बना एक नूर का कुंजा बाहर क्यों जाए के ढूंढा।
                                सबन के बीच है लहरी।।
राह एक सहज का चलना कदम दो संभल के धरना।
                                 वह बनेगा भरथरी शहरी।।
गलत शब्द वही जो जाती मरहम की राह ना पाती।
                              यह दुनिया भरम की घेरी।।
घीसा संत ही गावे शब्द कोई संत जन आवे।।
                                    तुम्हारा मान है वेरी।।



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