*271. अवसर बहुत भला रे भाई।। 110

अवसर बहुत भलो रे भाई।।
मानस तन देवन को दुर्लभ है सोई देह तुम पाई।।

तज अभिमान सरपंच झूठ को छोड़ गुमान बढ़ाई।
मात-पिता स्वार्थ के संगी, मायाजाल फैलाई।।

जब लग जरा रोग नहीं व्यापे, ले गुरु ज्ञान भलाई।
साधु संगत मिली सतगुरु को सोई सकल सुखदाई।।

कहे पुकार चेत नर अंधा यह तम आन गवाई।
कहे कबीर यह देह कांच की बिनसत वार ना लाई।।

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