*260. नजर भर देख ले मुझको, शरण में आ पड़ा तेरी।।101।।

नजर भर देख ले मुझको शरण में आ पड़ा तेरी।।

तेरा दरबार है ऊंचे, कठिन जाना है मंजिल का।
हजारों दूत मार्ग में, खड़े हैं पंथ को घेरी।।

नहीं है जोर पैरों में दूसरा संग नहीं साथी।
सहारा दे मुझे अपना, करो नहीं नाथ अब देरी।।

नहीं है भोग की इच्छा, न दिल में मोक्ष पाने की।
प्यास दर्शन की है मन में, सफल कर आपको मेरी।।

क्षमा कर दोष को मेरे, वृद्धि को देखकर अपने।
ब्रह्मानंद कर करूना, मिटा दे जन्म की फेरी।।



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