*514 आशिक हो ना फिर सोना भी क्या रे।। 233
आशिक हो ना फिर सोना भी क्या रे।।
जो तेरी आंखों में नींद घनेरी तकियाऔर बिछोनाभी क्या रे।।
बासी कूशी गम के टुकड़े, मीठा और अलूणा भी क्या रे।।
जिस नगरी में दया धर्म नहीं उस नगरी में रहना भी क्या रे।। कथ की कमाली कबीरा थारी बाली।
शीश दिया फिर रोना भी क्या रे।।
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