*206 हर-हर जपले बारंबार।।81।।
हर-हर जपले बारंबार इब तने जन्म अमोलक पाया।
कॉल बली तुझे कभी ना छोड़े समझे क्यों ना गवार।।
भाई बंधु कुटुंब कबीला यह सब सिर पर भार।
चलती बरिया कोई ना तेरा बिन हरी सर्जन हार।।
जगत बोझ और मानव बड़ाई, दिल से दूर उतार।
चले सवेरा उठसी डेरा, करले बीच मुरार।।
तेरे नगर में पीठ लगी है सौदा करो विचार।
नितानंद महबूब गुमानी कर निर्भय दीदार।।
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