*385 अे सुन बुलधा आले हरि ने सुमर मेरे भाई।। गोरख नाथ।।161।।
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रे सुन बुलद्धा आले हरि ने सुमर मेरे भाई।।
राम नाम मुख कुआं बना ले रसना पाट चढ़ाई।
हाथ मूसली पैर गुदड़ी सुरता चाक चलाई।।
संस्कार चरस गेम कुए में मन की मंडल लाई।
दया धर्म दो जोड़ नारिए, तन की हलस चलाई।।
आशा तृष्णा 2 खाल बहत हैं, आपे क्यारी लाई।
तेरी क्यारी मैं क्या-क्या उपजे खबर लगा मेरे भाई।।
जब तेरी खेती पकने लगी सूरत रुखाला आई।
ज्ञान गोलियां लिया हाथ में निर्गुण टाट बचाई।।
कूट-कूट गेरी कालर में, पांच बुल्धा तैं गाही।
ओहन सोहन पवन चला दी कनक कनक बरसाई।।
नाथ इलाही हेला देंगे सुन पटवारी भाई।
शरण मछंदर गोरख बोले भर भर धड़ी बगाई।।
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