*183 सखी री पड़ी अंध के कूप।। 72

सखी री पड़ी अंध के कूप सजन घर कैसे पावे री।।

काल ने रच रखा यह डेरा, तेरे छोड़ चोगीर्दे करडा पहरा।
                                     तू कैसे निकल के जावे री।।

माया नित नया खेल दिखावे, बंदर के ज्यों नाच नचावे।
                              अंत समय तुम खाली जावे री।।

जग चिड़िया रैन बसेरा है, आवागमन का लगा फेरा है।।
                            समझ तूने कुछ ना आवे री।।

कुल कुटुंब में क्यों भरमाई, यह तो है ज्यों बादल की छाई।
                             पल भर में यह हट जावे री।।

सतगुरु खोज जो मुक्ति चाह्वे काम क्रोध को मार भगावे।
                                तने शुद्ध निज घर आवे री।।

सतगुरु ताराचंद दे ज्ञान कटारा, पकड़ोशरण थाराहोनिस्तारा।
                              जो तूं राधास्वामी गावे री।।

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