*164. सतगुरु तुमसे कह रही हूं मैं।। 65

सतगुरु तुमसे कह रही सूं मैं, कब लेवन ने आओगे।
बाट देख के हार ली दाता कब सूरत दिखलाओगे।।

युग बीत लिए अब तो सारे आशा के संसार में।
बंधन लगे हैं यम के भारी फस गई में घर बार में।
      इस चक्कर से निकलन की कब दया दिखाओगे।।
कॉल माया की नगरी में दो चोर लुटेरे आ रहे सैं।
काम क्रोध मद लोभ मोह मने चुप चुप के खा रहे सै।
   इन ठगीयों की नगरी से कब आकर मुझे बचाओगे।।
मात-पिता सुते भाई बंधु, ना गोती नाती प्यारे से।
सुख में बोले राजी होके दुख में पीठ दिखा रहे सैं।
      धुर का साथी नाम बताया कब मंजिल मुझे दिखाओगे।।
सरला दास के सतगुरु कंवर जी आप मेरी या पूरी सै।
बुलाईयो चाहे नहीं बुलाईयो दर्शन बहुत जरूरी सै।
     मेरे जीवन का सार यही है कब भक्ति मेरी कर आओगे।।

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