*257 मेरा रह गया राम मिटा झगड़ा।। 100
मेरा रह गया राम मीटा झगड़ा।।
दुविधा दुरमति दिल से त्यागी।
पकड़ पछाड़ा मन तगड़ा।।
नाशवान की आशा त्यागी।
अविनाशी का मिला दगड़ा।।
सुख सागर का रास्ता पाया।
टोपी ओढ़ो भव पकड़ा।
घीसा संत शरण सतगुरु की।
जीता के मनवा पकड़ रगड़ा।।
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