*384 तूं तो गफलत में सो गया रखवाला।। 161
तू तो गफलत में सो गया रखवाला
बाड़ी की क्यों ना बाड़ करी।।बड़ी मुश्किल से बाड़ी बोई, भरना पड़सी हाला।
मान बड़ाई क्या की भरसा, पड़ा बीज में घाला।।
पांच मृगडी हिली बाड़ी में, पांच हिल गया काला।
पान फूल सारा खाग्या, काढ्या तै पेड़ निराला।।
एक लोमड़ी हिल्गी बाड़ी में, खागड़ तीन खुला रहा।
भीड़ पड़ी में जाग्याकोन्या, सो गया हो मतवाला।।
सेती धनिया खेती हर कोई, नाटे कोई संत निराला।
कहत कबीर सुनो भाई साधो खुल गया भ्रम का ताला।।
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