*388 बनज कैसे किया रे, मेरे लालन के।। 162

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वणज कैसे किया रे, मेरे लालां के ब्यापारी।।

गोदी गूण बैल हैं बूढ़े, बोझ भरा बड़ा भारी।
जाना दूर पहुँचना मुश्किल, मूर्ख नहीं विचारी।।

आगै नगरी चोर ठगां की, वहां जा बालद तारी।
तूँ तो भोंदू पड़के सोग्या, या खेप लुटा दई सारी।।

साहूकार की लाया पूंजी, देनी नहीं विचारी।
आगे की तेरी परत ऊठगी, कोड़ी मिले ना उधारी।।

किसै ने भरली लोंग सुपारी, किसी ने सांभर खारी।
सन्तों ने भर लिया नाम हरि का, बनजा ने संसारी।।

कह कबीर सुनो भई साधो, खोटी वृति थारी। 
जग में निंदा राजा डांटे, यमपुर की तैयारी।।

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