*283. सत्संग नाम की गंगा है।। 118

सत्संग नाम की गंगा है कोई नहावे चतुर सुजान।।

बिन सत्संग तेरा भरम ना टूटे कर्मकांड का ना भांडा फूटे।
कॉल बली तने चौड़े लूटे, क्यों करता अभिमान।।

साधु संगत की सेवा करले सत गुरु चरणों में चित धर ले।
उस साहिब का नाम सुमर ले पावेगा निज धाम।।

पांचपच्चीस कोसमझ पकड़ले, दसों इंद्रियोंको वशमें कर ले।
गुरु वचन का पालन करले, धर के आत्मज्ञान।।

गुरु दास आनंद आनंद प्रकाशा, प्रेमचंद गुरु चरण प्यासा।
सतगुरु दरस दे अभिलाषा थारे  तूर्यापद का ज्ञान।।

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