*212. नित्यानंद छिक रहे नूर में।। 83

नित्यानंद छिक रहे नूर में, मिल महबूब गुमानी।।
दर्श देख बहुत सुख पाए, चढ़ गए गह गुण गामी।।

शीश चढ़ाकर प्याला लिया दिया आप दिल जानी।
मतवाले कर लिए महल में अखियां रूप लुभानी।।

                               भई दर्श दीवानी।
परली पार प्रीतम का डेरा पहुंचे कोई-कोई प्राणी।।

भाई सज्जन कोई खुद मस्ती दुनिया दौलत वाणी।
नित्यानंद मस्तान रब में कहीं अगम की वाणी।।

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