*184. सुहागिन में तो हो गई।। 73

सुहागिन में तो हो गई, मेरा जिस दिन मरा भरतार।।

विधवा रही पति जीने से भोगे कष्ट अपार।
जिस दिन मर गया पति हमारा खूब करें श्रृगार।।

पांच पुत्रों ने मार के मैं भई सपूती नार।
जिस दिन मर गए दसों भाई सोई थी पैर पसार।।

मात-पिता के ही मरने से मिटी सभी तकरार।
सारे सुख उस दिन भोगूंगी, लूं सारे कुटुंब ने मार,

कह कबीर सुनो भाई साधो इसका करो विचार।
इस त्रिया ने क्या सुख भोगा सारे कुटुंब ने मार।

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