*222. भजन बंदगी कर सतगुरु की।। 86

भजन बंदगी कर सतगुरु की छोड़ मुनि माया का मोह।
चलना है रहना नहीं बंदे जग में जीना है दिन दो।।

दो पुत्री सारद की कहिए, मैं बालक ब्रह्मा का जॉय।
चार वेद गीता पढ़ आई लगा शब्द जब भागा वो।।

सूरत शब्द का एक घर मेंला, उठ रही झीनी खुशबू।
अनुभव शब्द गुरु मुख वाणी लगे बाण घर हो जा वो।।

जागत सोवत उठत बैठत बिना भजन प्रतीति ना हो।
सार शब्द गुरु मुख वाणी गुरु मुख प्यारा परखे कोय।।

कह रविदास अमरपुर डेरा अवगत गुरु ने परखा जो।
पांच सुन्न से न्यारा जो खेले सो योगी मस्ताना होय।।

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