*653. लिए काट जिसे बो के आया।।

लिए काट जिसे बो के आया।
हंसते-हंसते गया यहां से फिर वापस क्यों रोके आया।।

गर्भ के अंदर मदद करी, वह खास नरक की कोठी थी।
हर्क फर्क कुछ रहा नहीं वह जगह बहुत ही छोटी थी।
 तूने भजन करण की होती थी फिर सहम डले ढो के आया।।
उस मालिक ने सौंप दई है तेरे हाथ में ताला कुंजी।
कित खाई कित खर्च करी, मने बता दे रे मुंजी।
   कुछ साहूकार से एंठ के पूंजी, बता कहां खो के आया।।
मनुष्य जन्म तुझे मिला अमोला नाम रहे तेरा दुनिया में।
सदा कुसंग के सथ रहा तू कोन्या बैठा गुनिया में।
 एक अनमोल सुरंग की दुनिया में तू झूठे जंग को के आया।।
गाने वाला गा रहा था और सुनने वाला सुन रहा था।
लोग सभा के कहन लगे भला ठीक ज्ञान सा आ रहा था।
  तू दयाचंद जा रहा था तूने मायने में टोह के आया।।

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