*209 क्यों कर मिलो पिया अपने को।। 82
क्यों कर मिलूं पिया अपने को।
पिया बिशर मेरी सुध बुध विसरी पिया मडी तन तपने को।
भवन ना भावे विरह सता, क्या करिए जग सपने को।
दिखे देह नेह नहीं छूटे, ले रही माला जपने को।
बन बन ढूंढत फिरू दीवानी ठोर कहीं ना पाई छुपने को।
नित्यानंद महबूब गुमानी क्या समझावे अपने को।।
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